गुरु-शिष्य परंपरा की 400 वर्ष प्राचीन कला तालबंदी अल्बर्ट हॉल पर हुई साकार
जयपुर। कल्चरल डायरीज के पांचवें एडिशन के तहत शुक्रवार की शाम अल्बर्ट हॉल पर फाल्गुन की सुगंध बिखरी। जब डीग जिले के नगर कस्बे से आए कलाकारों ने अपनी पारंपरिक प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। गुरु-शिष्य परंपरा की 400 वर्षों की विरासत को तालबंदी के रूप में पुनः जीवंत करते हुए, डॉ. बाबूलाल पलवार तालबंदी संगीत संस्थान के 15 कलाकारों ने तालबंदी गायन और ब्रज रसिया लोकगीतों व नृत्य की मोहक प्रस्तुतियां दीं।
कार्यक्रम की शुरुआत अमित पलवार के नेतृत्व में भगवान शिव के लिए नगमा वादन से हुई। जिसे पूरे दल ने अपने गुरु डॉ. बाबूलाल पलवार को समर्पित किया। यह नगमा वादन पूरी तरह से ताल यंत्रों पर आधारित था भारतीय लोक वाद्य यंत्रों की इस जुगलबंदी से अल्बर्ट हॉल पर मौजूद प्रत्येक दर्शक मोहित हो गया। भागवान शिव के डमरू के वृहद स्वरूप नाद/बम्ब की ताल पर सुर और ताल के अलौकिक समागम ने दर्शकों को भक्ति रस के साथ वीर रस की भी अनुभूति करवाई। नगाडे पर उस्ताद सिद्धमल राजस्थानी ने जिस तरह से ताल दी, उसने तालबंदी शैली को दर्शकों के बीच पूरी तरह से साकार कर दिया।
अल्बर्ट हॉल पर जब ब्रज का सुविख्यात मयूर नृत्य शुरू हुआ तो सारे दर्शक मंत्रमुग्ध हो झूम उठे साथ ही “जब से धोखा देके गयो, श्याम संग नाय खेली होरी” की प्रस्तुति ने फाल्गुन में होरी के रंग गोल दिए।
गौरतलब है कि उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी की पहल पर पर्यटन विभाग के नवाचार के तहत आयोजित कल्चरल डायरीज के अवसर विभाग के उपनिदेशक नवल किशोर बसवाल, उपनिदेशक सुमिता मीणा, सहायक निदेशक हिमांशु मेहरा व पर्यटक अधिकारी अनिता प्रभाकर सहित अधिकारी व कर्मचारी भी मौजूद थे।