जयपुर। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन शनिवार को फ्रंट लॉन का पहला सत्र न केवल रोचक बल्कि ज्ञानवर्धक भी रहा। इस सत्र में समाजसेविका, लेखिका, राज्यसभा सांसद और प्रेरक वक्ता सुधा मूर्ति तथा उनकी पुत्री, शिक्षाविद् अक्षता मूर्ति के बीच संवाद हुआ। यह चर्चा “माय मदर, माय सेल्फ” विषय पर केंद्रित थी, जिसमें सुधा मूर्ति ने अपने बचपन, परवरिश और जीवन मूल्यों पर बात की। उन्होंने सेवा, समाज, परंपरा और नैतिकता जैसे विषयों पर अपने अनुभव साझा किए।
इस विशेष सत्र में ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति, राजस्थान सरकार के प्रमुख शासन सचिव डॉ. सुधांश पंत सहित कई वरिष्ठ व्यक्ति मौजूद थे। चर्चा के दौरान कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार किया गया, जिनमें प्रमुख रूप से लर्निंग (सीखना), लिविंग (जीवन जीना), नॉलेज (ज्ञान), आदर्शवाद (आइडियलिज्म) और दृढ़ संकल्प (डिटरमिनेशन) शामिल थे।
आदर्शवाद और जीवन के मूल्य
अक्षता मूर्ति ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया कि अगर कोई 20 साल की उम्र में आदर्शवादी नहीं है, तो इसका मतलब है कि उसके पास दिल नहीं है, और अगर कोई 40 के बाद भी आदर्शवादी है, तो इसका मतलब है कि उसके पास दिमाग नहीं है। क्या आदर्शवाद केवल युवावस्था तक सीमित है?
इसके उत्तर में सुधा मूर्ति ने दृढ़ता से कहा कि मैं 74 साल की उम्र में भी आदर्शवादी हूं। मैंने हमेशा यही सिखाया है कि सबसे पहले एक अच्छा इंसान बनो। दिल साफ़ रखो, जो सोचो वही कहो और वही करो। जब विचार, शब्द और कर्म में सामंजस्य होगा, तभी जीवन संतुलित रहेगा।”
किताबों से जुड़ाव और सीखने की प्रक्रिया
अक्षता ने अपनी मां से उनके प्रिय विषय, किताबों पर चर्चा की। उन्होंने पूछा कि आप किताबों से इतना सीखती हैं और हमें भी पढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। यह आदत आपके जीवन में कैसे विकसित हुई?
इस पर सुधा मूर्ति ने अपने बचपन की यादें साझा कीं। उन्होंने कहा कि मैं शिक्षकों के परिवार से आई हूं। नारायण मूर्ति को छोड़कर मेरे परिवार के सभी लोग शिक्षा से जुड़े थे। बचपन में हर अवसर पर हमें उपहार के रूप में किताबें मिलती थीं, पैसे नहीं। हमें बताया जाता था कि नॉलेज सबसे महत्वपूर्ण है। इसीलिए मैंने तुम और रोहन (अक्षता के भाई) को भी किताबों के माध्यम से बड़ा किया।
समाजसेवा और नैतिकता की शिक्षा
अक्षता ने बचपन की एक घटना को याद किया उन्होंने कहा कि जब मैंने अपना जन्मदिन मनाने की जिद की थी, तो आपने पार्टी करने के बजाय उन पैसों को चैरिटी में लगाने के लिए कहा। तब मुझे यह अच्छा नहीं लगा, लेकिन अब समझ आता है कि आपने मुझे समाज की सेवा का महत्व सिखाया।
पसंदीदा किताबें और आदर्शवाद का प्रभाव
अक्षता ने बताया कि उन्हें ऐसी किताबें पसंद हैं, जिनमें ‘स्टोरी ऑफ़ रेज़िलिएंस’ होती है, जैसे—‘शेक्सपीयर की हैमलेट’ और ‘एलिसन वे की सिक्स ट्यूटर क्वीन’। उन्होंने पूछा, “क्या आपको भी कोई ऐसी किताब मिली जिसने आपके आदर्शवादी विचारों को प्रेरित किया?”
सुधा मूर्ति ने एक मार्मिक अनुभव साझा किया कि मेरी एक किताब के अध्याय ‘अ वेडिंग टू रिमेंबर’ से जुड़ी एक घटना मुझे हमेशा याद रहती है। एक बार मुझे किसी शादी में बुलाया गया। जब मैंने कारण पूछा, तो दूल्हे के पिता ने बताया कि उनके बेटे ने मेरी किताब पढ़ी और एक इकोडर्मा से पीड़ित लड़की से शादी करने का फैसला किया। यही मेरे लिए आदर्शवाद की सबसे बड़ी जीत थी।
दृढ़ संकल्प और संघर्षों से सीखना
अंत में सुधा मूर्ति ने दृढ़ संकल्प और जीवन में आने वाली चुनौतियों को लेकर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि कई किताबों ने मुझे संघर्ष और संकल्प का पाठ पढ़ाया। जब मैं बच्ची थी, तो मेरे हीरो मेरे दादा थे। बड़ी हुई, तो पिता हीरो बने। फिर महसूस हुआ कि असली सीख अनुभवों से मिलती है। ‘टेन थाउज़ेंड माइल्स विदआउट क्लाउड’ और ‘किंगडम ऑफ़ इंडस’ वे किताबें हैं, जिन्होंने मुझे बहुत कुछ सिखाया।