गोविंद देव जी को अर्पित की गईं सुनहरी, रुपहली और 108 मणियों की रेशमी पवित्राएं

जयपुर। श्रावण शुक्ला द्वादशी बुधवार को आराध्य देव श्री गोविंद देव जी मंदिर में महंत अंजन कुमार गोस्वामी के सान्निध्य में ठाकुर श्री गोविंद देव जी, राधा रानी और अन्य विग्रहों को पवित्रा धारण कराई गई। ठाकुर श्रीजी को सुनहरी, रुपहली, 108 मणियों की रेशमी पवित्रा, कच्चे सूत की केसरिया रंग की पवित्राएं तथा 108 गांठों वाली पीले-केसरिया सूत की विशेष पवित्राएं अर्पित की गईं।

चमकीले रेशम से बनी दो मुख्य पवित्राएं ठाकुर जी की पोशाक के ऊपर धारण करवाई गईं जबकि पांच विशेष पवित्राएं चरणों में समर्पित की गईं। मंदिर के जगमोहन में सजे चांदी के झूले पर 216 पवित्राएं बांधी गईं। धूप झांकी से लेकर शयन झांकी तक ठाकुर जी ने पवित्रा धारण किए रखा। गौड़ीय संप्रदाय में पवित्रा को वर्ष भर की गई सेवा का प्रतीक माना जाता है। यदि पवित्रा अर्पित नहीं की जाती, तो वर्ष भर की सेवा निष्फल मानी जाती है। पवित्रा सुंदर, सुगंधित केसर से रंगी हुई होती है जिसकी गांठें भगवान को कष्ट न दें, बल्कि उन्हें शोभायमान करें।

इस अवसर पर गोविंद देव जी के प्राकट्यकर्ता रूप गोस्वामी जी की तिरोभाव तिथि का पूजन भी श्रद्धा से किया गया। श्रीमन् चैतन्य महाप्रभु, श्रीमन् नित्यानंद महाप्रभु, श्रीमन् नित्यानंद महाप्रभु, श्रीमन् गदाधर पंडित, श्रीनिवास जी, अद्वेताचार्य जी, रूप गोस्वामी जी, सनातन गोस्वामी जी, श्रीजीव गोस्वामी जी, गोपाल भट्ट गोस्वामी जी, रघुनाथ भट्ट गोस्वामी जी, पद्म कुमार गोस्वामी जी सहित गौड़ीय संपदाय के 64 आचार्यों का वेद मंत्रोच्चार के साथ भाव भरा आह्वान कर पूजन किया गया।

सभी के चित्रपट के समक्ष पत्तल में मिठाई, सब्जी-पूड़ी सहित अन्य व्यंजन परोसे गए। उल्लेखनीय है कि गौड़ीय संप्रदाय की वंश परम्परा में सातों देवालयों के करीब 200 आचार्य हुए हैं। इनका पितृ के रूप में पूजन के बजाय आचार्य के रूप में ही पूजन किया जाता है।

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