सिर्फ डायलॉग याद कर लेना ही पर्याप्त नहीं, संवाद में संगीतात्मकता होनी चाहिए : भार्गव

जेकेके में वरिष्ठ नाट्य गुरु भारतरतन भार्गव ने की ‘नाट्य शास्त्र पर व्याख्यान एवं परिचर्चा’

जयपुर। जवाहर कला केंद्र की ओर से सोमवार को कृष्णायन में ‘नाट्य शास्त्र पर व्याख्यान एवं परिचर्चा’ के दो दिवसीय कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। इस मौके पर वरिष्ठ नाट्य गुरु, नाटककार, समीक्षक व निर्देशक भारतरतन भार्गव ने नाट्यशास्त्र के विभिन्न सिद्धांतों पर प्रकाश डाला। उन्होंने रंगकर्मियों को सरल भाषा में इसके महत्व व बारीकियों से अवगत कराया। मंगलवार को भारतरतन भार्गव संस्कृति कर्मी, कला आलोचक व निबंधकार डॉ. राजेश कुमार व्यास के साथ संवाद करेंगे।

भार्गव ने नाट्यशास्त्र को लेकर कलाकारों के बीच चर्चा से कार्यक्रम की शुरुआत की। उन्होंने बताया कि नाट्यशास्त्र को केवल पढ़ लेना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि समझना आवश्यक है। इसमें भूगोल का विशेष महत्व है क्योंकि भौगोलिक परिस्थितियां व्यक्ति के हाव-भाव, भाषा, वेशभूषा और सांस्कृतिक परिवेश को प्रभावित करती हैं, जिससे अभिनय की शैली भी बदलती है।

इतिहास के संदर्भ में उन्होंने बताया कि समय के साथ नाट्य शैली में कई बदलाव हुए हैं, लेकिन इसके मूल तत्व स्थिर रहे हैं। उन्होंने अभ्यास के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि नाटक को महज 10-15 दिनों में तैयार करना उपलब्धि नहीं है, बल्कि निरंतर अभ्यास ही इसे दर्शकों तक प्रभावी रूप से पहुंचा सकता है। इसी के साथ सिर्फ डायलॉग याद कर लेना ही कला नहीं बल्कि संवाद में संगीतात्मकता होनी चाहिए और कलाकारों को आंगिक व वाचिक तत्वों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इस अवसर पर जवाहर कला केंद्र की अतिरिक्त महानिदेशक अलका मीणा और वरिष्ठ लेखाधिकारी बिंदु भोभरिया अन्य प्रशासनिक अधिकारी व बड़ी संख्या में रंगकर्मी उपस्थित रहे।

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