टीम एनएक्सआर जयपुर। प्रदेश के ऐतिहासिक किले-महल विदेशी पर्यटकों को इस ओर खींच लाए हैं। उसी तरह सर्दियों के मौसम में विदेशी पक्षी भी प्रदेश की झीलों, तालाबों की ओर खींचें चले आते हैं। यहां आने के लिए इन्हें ना किसी वीजा की जरूरत पड़ती है और ना ही किसी जीपीएस की। बस कारवां के साथ निकल पड़ते हैं हजारों किलोमीटर के सफर पर।
भरतपुर का केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान इस समय करीब 350 से अधिक प्रजातियों के हजारों पक्षियों के कलरव से चहक रहा है। इनकी ये चहचहाहट पक्षी प्रेमियों को इस ओर खींच लाती है। यहां विदेशी मेहमानों सहित अन्य पक्षियों ने घोंसले बनाना शुरू कर दिया है।
यहां पक्षियों को देखने के लिए ई-रिक्शा, साइकिल और बोट की सुविधा
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के उप वन संरक्षक मानस सिंह ने बताया कि यहां पक्षियों को निहारने वालों की भी संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। 1 से 19 नवंबर के बीच यहां 4,453 भारतीय पर्यटक, 2,088 स्टूडेंट्स और 847 विदेशी पर्यटक आ चुके हैं। पर्यटक यहां आकर ई-रिक्शा, साइकिल और बोट की सफारी करके भी पक्षियों को निहार सकते हैं। नवंबर में अभी तक 1611 पर्यटकों ने ई-रिक्शा, 1048 पर्यटकों ने साइकिल और करीब 120 पर्यटकों ने पक्षियों को निहारने के लिए बोट का विकल्प चुना। इसके अतिरिक्त देश ही नहीं विदेशों से भी वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर्स यहां पक्षियों के फोटोज लेने यहां आते हैं। उप वन संरक्षक मानस सिंह ने बताया कि वीकेंड में पर्यटकों की संख्या अधिक रहती है। ऐसे में उन्हें यहां आकर प्रवेश टिकट लेने में किसी तरह की दिक्कत ना आए, इसके लिए क्यूआर कोड की व्यवस्था की गई है। ताकि पर्यटक इसे स्कैन कर प्रवेश टिकट प्राप्त कर सकें। SSOID की अनिवार्यता को भी ख़त्म किया गया है।
पक्षियों के साथ लेपर्ड सहित अन्य वन्यजीवों के दीदार भी
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों की अटखेलियां देखने के साथ ही लेपर्डस सहित अन्य वन्यजीवों की भी रेयर साइटिंग होती है। पिछले दिनों यहां पर्यटकों को यहां लेपर्ड दिखाई दिया था।
सांभर में भी दिख रहा मेहमानों का कलरव
सर्दियों के मौसम में सांभर सहित अन्य झीलों और तालाबों में विदेशी पक्षियों की उपस्थिति देखने को मिल रही है। इस बीच यहां विभिन्न प्रजातियों के कई पक्षियों की बीमारी के चलते मौत भी हो चुकी है। वहीं दूसरी ओर बीमार पक्षियों का वन विभाग, वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया, पशुपालन सहित विभिन्न एनजीओज़ के सहयोग से उपचार किया जा रहा है। अभी सांभर झील में विभिन्न प्रजातियों की करीब दो लाख से अधिक बर्ड्स देखने को मिल रही हैं।