अलविदा उस्ताद जाकिर हुसैन
जयपुर। देश-दुनिया के कला जगत में आज खामोशी छाई है। सबका चेहेता चेहरा उस्ताद जाकिर हुसैन और उनका तबला खामोश हो गया। इतना ही नहीं तबले पर ट्रेन की आवाज, भगवान शंकर के डमरू की आवाज, उमड़ते-घुमड़ते बादलों की गर्जना की गूंज अब सुनाई नहीं देगी। तबला साज के इस शहंशाह की सादगी भी बेमिसाल रही। पदमश्री, पद्मभूषण, पद्म विभूषण समेत तीन बार ग्रैमी अवॉर्ड विनर रहे उस्ताद जाकिर हुसैन की तबले पर उनकी अंगुलियों की जादुई थाप का हर कोई मुरीद रहा। गुलाबी शहर जयपुर में उनकी कई परफोर्मेंस यादगार रहीं। चाहे बिड़ला सभागार हो या सेंट्रलपार्क उन्हें सुनने व देखने के लिए बड़ी तादाद में संगीत के दीवाने जुट जाया करते थे। यहां सेंट्रलपार्क में संतूर के शहंशाह रहे पं.शिवकुमार शर्मा का कॉन्सर्ट था। उसमें तबले पर उस्ताद जाकिर हुसैन थे।
संतूर साज पर राग की आलापचारी के दौरान माहौल काफी चुप था। जब उस्ताद जाकिर हुसैन ने तबले पर एक अंगुली लगाई तो समूचा माहौल दानिशमंद श्रोताओं की तालियां से गूंज उठा। तब आला फनकार जाकिर हुसैन ने बोला खास कलाकार तो पं.शिवकुमार शर्मा हैं, मैं तो उनकी संगत कर रहा हूं। यही सादगी और कला की इबादत इस मकबूल फनकार की जिन्दगी के आखिर पड़ाव तक बनी रही।
उन्हें तहे दिल से शुक्रिया बोलता था तो मुस्कुराकर कहते थे जनाब! तहे अल्फाज मत इस्तेमाल कीजिए, ऐसा लगता कोई तहखाने की बात कर रहा हो। हालांकि तबला साज पर उनकी थाप जरूर थम गई हों पर, उनकी बादशाहत कई युगों तक कायम रहेगी।
संगीत में छोटी गलती भी बर्दाश्त नहीं करते थे : हमीद खान कावा
किस्से तो बहुत हैं और उनकी यादें भी बहुत हैं। पर, जयपुर के कई कलाकारों से उनका दिली रिश्ता रहा। इनमें कावा ब्रास बैंड के डायरेक्टर हमीद खान कावा उनके चेहते तबला नवाज रहे। उस्ताद जाकिर हुसैन के यूं अचानक दुनिया से रुखसत हो जाने से हमीद खान कावा बेहद दु:खी हैं। वे कहते हैं कि जाकिर हुसैन उनके रहबर थे। उन्होंने बताया कि उनके आमेर स्थित उनके घर पर जाकिर हुसैन का काफी आना जाना रहा। वे चाय भी खुद बनाया करते थे और साथ में उस्ताद के बजाए अरे हुजूर वाह! चाय बोलिए… कहते थे।
हमीद खान ने बताया कि जाकिर हुसैन की दो बेटियां हैं। एक बेटी की शादी में खुद हमीद खान के निर्देशन में कावा ब्रास बैंड वादन हुआ था। उन्होंने बताया कि वे इतने सुरीले थे कि संगीत में छोटी गलती भी बर्दाश्त नहीं करते थे। इसलिए कावा ब्रास बैंड की प्रस्तुति पर वे काफी खुश नजर आए। हमीद खान ने बताया विदेश में भी जाकिर हुसैन ने उन्हें काफी सपोर्ट किया जिसे वे कभी फरोमोश नहीं कर पाएंगे। उन्होंने बताया कि अमरीका में भी जाकिर हुसैन घंटों ही रियाज करते थे। उन्हें देखने भर से हर कलाकार कुछ न कुछ सबक जरूर लेता था। हमीद ने कहा कि जाकिर हुसैन के साथ बिताए कई पल उनकी यादों में हमेशा जिन्दा रहेंगे।
श्रोताओं की बांधने के माहिर कलाकार थे : पं.विश्वमोहन भट्ट
मशहूर मोहनवीणा वादक पद्मभूषण पं.विश्वमोहन भट्ट ने कहा कि जाकिर हुसैन फकत अपने घराने की शैली नहीं बजाते थे। वरन् हर घराने की शैली अपनाते ही नहीं उसे बजाते भी थे। उन्होंने बताया कि अहमदाबाद में सप्तक फेस्टिवल में वे अक्सर आते थे और परफॉर्म करते थे। इतना ही नहीं दूसरे कलाकारों को भी बहुत ध्यान से सुनते थे। इस सप्तक फेस्टिवल का आयोजन पिछले 45 वर्षों से हर साल जनवरी में 1 से 13 जनवरी तक होता है। उनकी बहिन डॉ.मंजु इसका आयोजन करती रही थीं। चूंकि हाल में डॉ. मंजु का निधन हो गया है।
अब उनकी बेटी सप्तक फेस्टिवल की बागडोर संभालेंगी। उन्होंने बताया कि 7 जनवरी को जाकिर हुसैन इस फेस्टिवल में आने वाले थे। उन्होंने बताया कि जाकिर हुसैन श्रोताओं की बांधने के माहिर कलाकार थे। यही वजह है कि तबला वादन को आसां कर हरेक को अपना मुरीद बना लेते थे। इस प्रयोगधर्मी कलाकार के दुनिया से चले जाना शास्त्रीय संगीत से बहुत क्षति हुई है।
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