मुझे चाहिए दो वचन, भरत को अयोध्या का राज और राम का वनगमन

जवाहर कला केंद्र में श्री रामलीला महोत्सव का दूसरा दिन


फेसबुक और यूट्यूब अकाउंट पर लाइव प्रसारण भी

टीम एनएक्सआर जयपुर। एक तरफ राज्य में राम के राज्याभिषेक की तैयारियां, हर ओर उत्सव का माहौल दूसरी तरफ राजमहल में रानी कैकई के दो वचनों के समक्ष विवश राजा दशरथ। जवाहर कला केन्द्र की ओर से आयोजित श्री रामलीला महोत्सव के दूसरे दिन बुधवार को मध्यवर्ती के मंच पर मंचित रामलीला में संबंधों और भावनाओं के ताने-बाने को दर्शाने वाले प्रसंग मंच पर साकार किए गए। प्रस्तुति को दर्शकों की भरपूर सराहना मिल रही हैं। जवाहर कला केन्द्र के फेसबुक और यूट्यूब अकाउंट पर प्रस्तुति का लाइव प्रसारण भी किया जा रहा है।

वरिष्ठ नाट्य निर्देशक अशोक राही के निर्देशन में हुई नाट्य प्रस्तुति की शुरुआत राम गीत के साथ हुई। मंथरा की कुटिल सोच से प्रभावित कैकई ने राजा दशरथ के पास सुरक्षित अपने दो वचन मांग लिए। प्राण जाए पर वचन न जाए, रघुकुल की इस रीत को निभाते हुए दशरथ राम को चौदह बरस का वनवास और भरत को अयोध्या का राज दे देते हैं। पिता की स्थिति को जान राम सहज ही वनगमन को तैयार हो जाते हैं। दशरथ की जो आंखें राम के राजतिलक के सपने देख रही थीं अब उसी राम को वनवास की ओर बढ़ता देख मानों पथरा सी गई। राम और दशरथ के बीच संवाद से दर्शक भावुक होते हैं तो राम और लक्ष्मण और फिर राम और भरत की वार्ता से भाइयों के बीच का प्रेम झलक उठता है।

जीवन नैया खेवन हारे रे भैया, हैया हो हैया…

केवट ने राम से गंगा पार करवाने के किराए के रूप में भवसागर से पार लगाने की बात कहकर बड़ी शालीनता से अपनी बात मनवा ली। राम और केवट के बीच संवादों ने खूब वाहवाही बटोरी। केवट प्रसंग में हैया हो हैया… जीवन नैया खेवन हारे रे भैया.. गाने की प्रस्तुति ने नाट्य की सुंदरता व रोचकता को और भी बढ़ा दिया। नाट्य के एक अन्य दृश्य में राम का वनवासियों से संवाद भी देखते ही बना। इन संवादों के बीच अरे हो अयोध्या रो पूत, तू रघुवंशी रो सरदार.. गीत पर लोक नृत्य की अद्भुत प्रस्तुति दी गई।

‘रुचिर रूप धरि प्रभु पहिंजाई, बोली बचन बहुत मुसुकाई’, कहते हुए शूर्पणखा ने राम और लक्ष्मण की प्रशंसा की। पंचवटी में लक्ष्मण पर मोहित शूर्पणखा के संवादों ने खूब दाद बटोरी। वहीं राम और लक्ष्मण पर मोहित शूर्पणखा को अपनी नाक गंवानी पड़ती है यहीं से नाट्य प्रस्तुति को एक नया मोड़ मिलता है। शूर्पणखा रावण के पास पहुंचकर सीता के रूप का वर्णन करती है। सीता के सौंदर्य को जान रावण सीता हरण की प्रतिज्ञा लेता है।

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