अन्याय के खिलाफ अंबिका की हुंकार, रंगमंच पर जीवंत हुआ ‘पुरुष’

जयपुर। जवाहर कला केंद्र की पाक्षिक नाट्य योजना के अंतर्गत शुक्रवार को रंगायन सभागार में नाटक ‘पुरुष’ का मंचन हुआ। जयवंत दलवी द्वारा लिखित इस नाटक का निर्देशन निशा वर्मा ने किया वहीं नाट्य रुपांतरण सुधाकर करकरे द्वारा किया गया है।

खुशी का माहौल है, अंबिका अपनी मां और अन्ना के साथ बातचीत कर रही है, तभी उसकी दोस्त मथू वहां आती है और दोनों हंसी-ठिठोली करने लगते हैं। लेकिन जल्द ही अंबिका की खुशियां दुख में तब्दील हो जाती हैं। उसके साथ घटित होता है एक ऐसा हादसा जिसने उसकी चमकती दुनिया में काला अंधेरा ला दिया। लेकिन अंबिता रुकने वालों में से नहीं है, वह अपने पिता के सिखाए रास्ते पर चलने वाली एक सशक्त, निर्भीक और सिद्धांतवादी युवती है।

मैं डरने या थकने वाली नहीं। मैंने पूरी तैयारी कर ली है, मैं गुलाबराव को परास्त करके ही रहूंगी। नाटक में अंबिका के इस संवाद से प्रांगण गूंज उठता है। अंबिका एक स्कूल में पढ़ाती है उसके पिता भी शिक्षक हैं। उसका एक दोस्त है सिद्धार्थ जो दलितों के हक की लड़ाई लड़ता है। वहीं नाटक के अगले सीन में बाहुबली गुलाबराव जाधव की एंट्री होती है जिसके काले कारनामें कई बार अंबिका सबके सामने उजागर कर चुकी है। गुलाबराव अंबिका से बदला लेने के लिए उसे धोखे से डाक बंगले में बुलाकर उसका शोषण करता है।

यह सदमा अंबिका की मां तारा बर्दार्श्त नहीं कर पाती और आत्महत्या कर लेती है। सिद्धार्थ भी साथ छोड़ देता है। जबकि अंबिका की सहेली मथू इस मुश्किल समय में उसके साथ डटी रहती है। मथू अंबिका व अण्णा(पिता) का हौसला बढ़ाती है और उन्हें प्रतिकार के लिए भी प्रेरित करती है। अंततः अंबिका गुलाबराव को जिंदगी भर न भूल पाने वाला सबक सिखाती है और इसी के साथ नाटक का पटाक्षेप होता है।

नाटक में दीपिका सिंह (अंबिका), संध्या सिंह (मथू), सुरेश श्रीवास्तव (अण्णा साहब), आरती शुक्ला (तारा), महेन्द्र धुरिया (गुलाबराव), ऐश्वर्य दीक्षित (सिद्धार्थ) ने अपनी भूमिका बखूबी निभायीं। सम्राट यादव (इंस्पेक्टर गाडगिल), आकाश शर्मा (पांडु), आयुष (शिवा), प्रभात सिंह (बंडा) ने भी अभिनय किया। नाट्य रूपांतरण सुधाकर करकरे, प्रस्तुति नियंत्रक, सहायक निर्देशक डा. ओमेंद्र कुमार, संगीत विजय भास्कर व प्रकाश संचालन नरेन्द्र सिंह, कृष्णा सक्सेना का रहा।

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