जयपुर। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आखिरी दिन की शुरुआत सोमवार को लेखक और अभिनेता मानव कौल के अपनी पहली लेखन यात्रा के बारे में अनुभव साझा करने से हुई। ‘ए बर्ड ऑन माई विंडो सिल’ सत्र में उन्होंने कहा कि आप मुझे मेरे चेहरे के बजाय मेरे लेखन से ज्यादा पहचान सकते हैं। उन्होंने किताबों, एकांत और अकेले यात्रा करने के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त किया। उन्होंने ‘चाय’ से जुड़ी अपनी यादों का भी ज़िक्र किया और बताया कि यह उनकी ज़िंदगी का अहम हिस्सा कैसे बन गई। जो बाद में उनकी लेखनी का भी जरूरी पहलू बन गई। कौल ने बताया कि असली अनुभवों से मिली प्रेरणा ही उनके लेखन का आधार है। उन्होंने कहा कि शब्दों को आने देना होता है और जब वे आते हैं, तो उससे सुंदर कुछ नहीं होता।

उन्होंने अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए बताया कि मैं और मेरा दोस्त सलीम होशंगाबाद रेलवे स्टेशन पर बैठकर गुजरती ट्रेनों को देखा करते थे। हम हमेशा सोचते थे कि ये तेज़ रफ़्तार ट्रेनें कहां जा रही हैं, कहां समाप्त होती हैं। मैं उन सभी जगहों को देखना चाहता था और आज भी मुझमें वही बच्चा ज़िंदा है। जो उन जगहों पर जाना और उन लोगों से मिलना चाहता है।
‘छौंक: भोजन, अर्थशास्त्र और सुरक्षा’ सत्र में नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी और शेयेन ओलिवियर ने वीर सांघवी से बातचीत की। बनर्जी और ओलिवियर ने यह चर्चा की कि कैसे अर्थशास्त्र समाज से गहराई से जुड़ा हुआ है। खासकर खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में। ओलिवियर ने अमेरिका का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां भोजन बनाने की प्रक्रिया अक्सर बस कई सामग्रियों को इकट्ठा करने तक सीमित रह जाती है, जबकि सच्ची पाक-कला सीमित संसाधनों में रचनात्मकता लाने में निहित होती है। बनर्जी ने कहा कि संतुलन और संयम न केवल खाना पकाने में, बल्कि जीवन में भी आवश्यक है। उन्होंने इस बात पर भी चर्चा की कि उन्होंने बड़े आर्थिक सिद्धांतों को कला और कार्टून के माध्यम से आम दर्शकों के लिए सरल बनाने की कोशिश की। उन्होंने खुद को एक ‘नौसिखिया पाठक’ की दृष्टि से देखने का प्रयास किया, ताकि जटिल आर्थिक अवधारणाओं को आधुनिक दर्शकों के लिए सहज बनाया जा सके। उन्होंने इस दिलचस्प तथ्य को भी उजागर किया कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय व्यंजन – चाहे वह पिज़्ज़ा हो, खिचड़ी हो या चाउमीन – वास्तव में आम जनता के भोजन से ही जन्मे हैं।

बनर्जी ने कहा कि अर्थशास्त्र हमारे जीवन के हर पहलू से गहराई से जुड़ा हुआ है। इसके बाद उन्होंने जोड़ा कि मैं अक्सर इस बारे में सोचता था कि अर्थशास्त्र को अधिक सहज और रुचिकर कैसे बनाया जाए। कैसे लोगों को इसे पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए, कठिन भाषा में उलझाए बिना? तभी मुझे एहसास हुआ कि भोजन के माध्यम से इस विषय को जोड़ना एक शानदार तरीका हो सकता है।