पद्म भूषण भगवती चरण वर्मा की कृति पर आधारित नाटक से सजा मंच

चित्रलेखा के मंचन के साथ 7वें राजरंगम् का समापन

पांच दिवसीय महोत्सव ने किया रंगमंच के रंगों से सराबोर

जयपुर। संस्कृति मंत्रालय और एक्टर्स थिएटर एट राजस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 7वां राजरंगम् रंगमंच के रंगों से सराबोर करने के बाद सोमवार को विदा हुआ। अंतिम दिन ‘चित्रलेखा’ नाटक का मंचन किया गया। जिसका निर्देशन व नाट्य रूपांतरण वरिष्ठ नाट्य निर्देशक धीरज भटनागर ने किया। पद्म भूषण अलंकृत साहित्यकार भगवती चरण वर्मा की कृति चित्रलेखा पर आधारित नाट्य प्रस्तुति में अभिनय, संगीत और नृत्य का समागम देखने को मिला जिसे दर्शकों की खूब सराहना मिली।

सभागार में प्रवेश करते ही दर्शक मंच पर मध्यकालीन भारत की छवि देखते हैं। महल और योगी की कुटिया को दर्शाने के लिए लकड़ी से सेट तैयार किया गया। जिस पर बने चित्र दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। मंच पर अभिनेता आशुतोष राणा की आवाज में गूंजते शिव तांडव पर नृत्य के साथ नाटक की शुरुआत होती है, जिसका भावानुवाद आलोक श्रीवास्तव ने किया है। आचार्य रत्नांबर के दो शिष्य श्वेतांक और विशालदेव अपने गुरु से पाप और पुण्य में अंतर पूछते हैं, इस पर आचार्य उन्हें संसार से ही ज्ञानार्जन की शिक्षा देते हैं।

इन्होंने निभाई विभिन्न जिम्मेदारियां

सरगम भटनागर ने चित्रलेखा, देवेश शर्मा ने बीजगुप्त, गिरिश मिश्रा ने कुमारगिरि, प्रेम चंद बाकोलिया ने श्वेतांक, कुणाल पुरसवानी ने विशाल देव, शुभम टांक ने रत्नांबर, पुरंजय सक्सैना ने चंद्र गुप्त, विनोद जोशी ने चाणक्य, मुकेश पारीक ने मुत्युंजय, अथर्व कुलश्रेष्ठ ने यशोधरा, मेघा गुप्ता ने सखी का किरदार निभाया। नेहा चतुर्वेदी और करुणा भटनागर ने वेशभूषा, धीरज भटनागर ने सेट, गगन मिश्रा ने प्रकाश संयोजन, दीपांशु शर्मा ने म्यूजिक संभाला। नितिन झांगिनिया ने संगीत संचालन, असलम पठान ने मेकअप किया। वहीं बैक स्टेज टीम में नेहा चतुर्वेदी, करुणा भटनागर, रयान चतुर्वेदी, सप्तक भटनागर, निधीश मित्तल, आरुष भटनागर, रचना भटनागर और नितिन भटनागर शामिल रहे।

राजरंगम् निर्देशक डॉ. चन्द्रदीप हाडा ने कहा कि इस बार महोत्सव में रंगमंच के शैक्षणिक और व्यावसायिक पक्षों पर प्रकाश डाला गया। प्रयास रहेगा कि महोत्सव के जरिए देशभर में शोध परक नाटकों का मंचन किया जाए जिससे रंगकर्मियों को मंच मिले और रंगकर्म के हर पहलु से कला प्रेमी रूबरू हो सके।

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