संयुक्त राजभाषा वैज्ञानिक एवं तकनीकी संगोष्ठी संपन्न

तेजपुर। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के सैनिक सहायता प्रणाली क्लस्टर की पहली संयुक्त राजभाषा वैज्ञानिक एवं तकनीकी संगोष्ठी ‘विकसित भारत में रक्षा प्रौद्योगिकी का योगदान’ विषय पर 12-13 दिसंबर के दौरान डीपीएआरओएंडएम, डीआरडीओ मुख्यालय दिल्ली के सहयोग से तेजपुर स्थित रक्षा अनुसंधान प्रयोगशाला (डीआरएल) द्वारा सफलतापूर्वक आयोजित किया गया । देश भर के विभिन्न डीआरडीओ प्रयोगशालाओं के 80 से अधिक प्रतिभागियों ने सम्मेलन में भाग लिया और अपनी वैज्ञानिक तथा तकनीकी शोध पत्र हिंदी में प्रस्तुत किए।

इस संगोष्ठी आयोजन का मुख्य उद्देश्य हिंदी के माध्यम से वैज्ञानिक ज्ञान के प्रसार को बढ़ावा देना था। तेजपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर शंभू नाथ सिंह मुख्य अतिथि के रूप में उद्घाटन सत्र में उपस्थित रहे। उन्होंने वैज्ञानिक संचार और राष्ट्रीय एकता में हिंदी के महत्व पर ध्यान केंद्रित करते हुए सभा को संबोधित किए। डॉ. सुनील शर्मा, निदेशक, डीपीएआरओएंडएम, डीआरडीओ मुख्यालय, अरुण चौधरी, निदेशक डीआईआईटीएम, डीआरडीओ मुख्यालय और ब्रिगेडियर सुजीत उपाध्याय, ब्रिगेडियर ईएमई 4 कोर भी सम्मानित अतिथि के रूप में कार्यक्रम में उपस्थित रहे।

कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. देव व्रत कम्बोज, निदेशक, डीआरएल के स्वागत भाषण से हुई, जिन्होंने वैज्ञानिक लेख लिखने के लिए हिंदी के उपयोग के महत्व पर प्रकाश डाला और प्रतिभागियों को अपने शैक्षणिक और व्यावसायिक प्रयासों में हिंदी को बढ़ावा देना जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया। दो दिवसीय कार्यक्रम में, प्रख्यात वैज्ञानिकों और डीआरडीओ के विभिन्न तकनीकी समूहों के प्रतिनिधियों सहित विभिन्न प्रतिष्ठित वक्ताओं ने हिंदी में रक्षा प्रौद्योगिकी और विकसित भारत में इसकी भूमिका से संबंधित विषयों पर विचार-विमर्श किया।

तेजपुर विश्वविद्यालय के संकाय सदस्यों द्वारा भी व्याख्यान दिए गए। यह कार्यक्रम 13 दिसंबर को समापन समारोह के साथ संपन्न हुआ। जिसमें नेरीवालम, तेजपुर के निदेशक डॉ. पी के बोरा मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। जिन्होंने वैज्ञानिक संचार में हिंदी की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर के सी विक्रम, डीआइजी एसएसबी सम्मानित अतिथि के रूप में उपस्थित थे। उनके संबोधन ने भारत में रक्षा प्रौद्योगिकी और वैज्ञानिक सहयोग दोनों को आगे बढ़ाने में भाषा को एकीकृत करने की आवश्यकता को रेखांकित किया। अंत में सभी शोध-पत्र प्रस्तुकर्ताओं को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए तथा धन्यवाद ज्ञापन के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ।

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