महाबली, दानवीर और मृत्युंजय होने के बाद भी कर्ण रहा अभिशप्त

जवाहर कला केन्द्र में नाटक का मंचन

जयपुर। जवाहर कला केन्द्र की ओर से पाक्षिक नाट्य योजना के अंतर्गत शुक्रवार को नाटक अभिशप्त का मंचन किया गया। वरिष्ठ नाट्य निर्देशक कविराज लईक ने नाटक का निर्देशन​ किया। नाटक की कहानी वरिष्ठ सरताज नारायण माथुर ने लिखी है। ‘अभिशप्त’ की कहानी पौराणिक ग्रंथ महाभारत के वीर योद्धा कर्ण पर आधारित है। जिसमें कर्ण को महारथी एवं मृत्युंजय बताया गया है।

नाटक में कही, अनकही कुछ बातों व चरित्रों को अपने मौलिक युग में प्रस्तुत करने की चेष्टा की गई है। कर्ण इसका ध्रुव केन्द्र है। ऐतिहासिक व पौराणिक चरित्रों की उदात्ता एवं भव्यता हमें चमत्कृत एवं उल्लासित करती है किन्तु इनका मानवीय संवेदनशील रूप हमारे अन्तःकरण को झकझोर जाता है। कर्ण की पत्नी वृषाली को इस नाटक में मानवीय संवेदनाओं के साथ उभारा गया है। पुरुष और प्रकृति का शाश्वत सम्बन्ध, शक्ति और शिव के रूप में सृष्टि के सृजन का आधार बना है। कर्म के मार्ग पर नारी, पुरुष की सहचरी के रूप में शक्ति स्वरूपा है। पार्वती शिव की, सीता राम की, राधा कृष्ण की शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित है। नाटक में सुदांशु आढ़ा ने कर्ण, हुसैन आर.सी. ने परशुराम, धीरज जीनगर ने कृष्ण, पायल मेनारिया ने वृषाली, वहीं ज्योति माली ने कुन्ती का किरदार निभाया। इसी के साथ भूपेन्द्र सिंह चैहान, भवदीप जैन, दिव्यांशु नागदा, प्रखर भटृ, विशाल चित्तौड़ा, प्रगनेश पण्डया, स्नेहा शर्मा, मानद जोशी ने अन्य पात्रों की भूमिका निभाई। अनुकम्पा लईक ने वेशभूषा, प्रबुद्ध पाण्डेय ने मंच व्यवस्था, प्रग्नेश पण्डया ने रूप सज्जा, खुशी परवानी ने संगीत संयोजन, शहजोर अली ने प्रकाश संयोजन संभाला।

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