आईएएसएसटी, गुवाहाटी के एक शोध अध्ययन में जहरीले पौधों में छिपी हुई उपचार क्षमता के बारे पता चला

नई दिल्ली। जैव-विविधता से समृद्ध असम में वैज्ञानिकों ने कुछ कमाल की चीजों के बारे में पता लगाया है। वैज्ञानिकों को प्रकृति के कुछ सबसे जहरीले पौधों के बारे में जानकारी मिली है जिनमें उपचार करने की बहुत क्षमता है। यह खोज चिकित्सा की रूपरेखा को बदल सकती है।

पौधों का उपयोग प्राचीन काल से ही उनके औषधीय गुण के लिए किया जाता रहा है। वहीं कुछ पौधे अपनी विषाक्तता के लिए जाने जाते हैं, उनमें लाभकारी फाइटोकेमिकल्स भी होते हैं जो पौधों और मनुष्यों दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो उनकी दोहरी प्रकृति को दर्शाता है। विषाक्तता के लिए विख्यात होने के बावजूद, उनमें असाधारण यौगिक होते हैं जिन्हें सावधानीपूर्वक पृथक करके उपचार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

इस क्षेत्र में अनुसंधान और विकास की प्रगति के साथ, विषैले पौधों से प्राप्त फाइटोकेमिकल्स की चिकित्सीय क्षमता समकालीन चिकित्सा के लिए एक आशाजनक दिशा के रूप में सामने आई है, जो भविष्य के अनुसंधान और चिकित्सा प्रगति के लिए मंच तैयार कर रही है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान, गुवाहाटी के इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन साइंस एंड टेक्नोलॉजी (आईएएसएसटी) के शोधकर्ताओं ने प्राकृतिक दुनिया के पत्तों, जड़ों और रस में छिपे रहस्यों का पता लगाते हुए विभिन्न जहरीली पौधों की प्रजातियों और उनके फाइटोकेमिकल घटकों की व्यापक जांच की है।

आईएएसएसटी के निदेशक प्रोफेसर आशीष के मुखर्जी और वरिष्ठ शोध फेलो भाग्य लखमी राजबोंगशी के नेतृत्व में एक शोध दल ने मौजूदा साहित्य की समीक्षा की और 70 जहरीले पौधों की प्रजातियों की पहचान की, जिनका उपयोग पारंपरिक रूप से बुखार और जुकाम से लेकर त्वचा रोगों और एडिमा तक कई तरह की बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। इन पौधों का उपयोग पहले से ही होम्योपैथी और पारंपरिक भारतीय चिकित्सा में किया जाता है।

शोधकर्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि पौधे फाइटोकेमिकल्स उत्पन्न करते हैं, प्राकृतिक यौगिक जो उनके स्वयं के अस्तित्व के लिए उपयोग किए जाते हैं और मानव जीव विज्ञान को भी प्रभावित कर सकते हैं। वहीं इनमें से कुछ विषाक्त होते हैं, लेकिन कुछ को पृथक करके संशोधित करने पर उनमें औषधीय गुण प्रचुर मात्रा में होते हैं।

आधुनिक फार्माकोलॉजी इन फाइटोकेमिकल्स की क्षमता को पहचानने लगी है। इन विषैले यौगिकों को सावधानीपूर्वक वैज्ञानिक प्रसंस्करण के साथ शक्तिशाली चिकित्सीय घटकों में बदला जा सकता है। टॉक्सिकॉन: एक्स (एल्सेवियर) में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि इन प्राकृतिक विषाक्त तत्वों का अध्ययन, वैधीकृत कैसे किया जा सकता है और संभावित रूप से इन्हें जीवनरक्षक दवाओं में कैसे बदला जा सकता है।

ये निष्कर्ष नृवंशविज्ञान पर आधारित हैं- कैसे स्वदेशी संस्कृतियां उपचार के लिए पौधों का उपयोग करती हैं। सांप के काटने से लेकर पीलिया के इलाज तक, इन पारंपरिक उपचारों का अब आधुनिक विज्ञान के नज़रिए से पुनर्मूल्यांकन किया जा रहा है। इसके निहितार्थ बहुत व्यापक हैं। कठोर परीक्षण के साथ, ये पौधे उन बीमारियों के लिए नई दवाएं खोजने में मदद कर सकते हैं जिनका अभी भी प्रभावी उपचार नहीं हो पाया है।

शोधकर्ताओं ने नैदानिक ​​उपयोग से पहले कठोर वैज्ञानिक वैधता के महत्व पर जोर दिया है। सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विषाक्तता का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया जाना चाहिए। लोक उपचार से एफडीए द्वारा अनुमोदित दवा तक का सफर लंबा है, लेकिन इस तरह के अध्ययनों के साथ, यह पहला कदम उठाया जा रहा है।

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