हमारी टीम में साउथ के कुछ खिलाड़ी ऐसे थे जिनकी सोच थी कि फास्ट बॉलर्स से चोट खाने से अच्छा है कि खेले ही नहीं : मोहिंदर अमरनाथ

सत्र के दौरान अमृत माथुर ने खिलाड़ियों का नाम भी पूछा, लेकिन अमरनाथ टाल गए बात

जयपुर। 1981-82 में क्रिकेट से बाहर था। इस दौरान मैं अपनी पत्नी के साथ यूके में था। मेरे क्रिकेटर मित्र कहने लगे कि अब 30 पार कर गया है, छोड़ क्रिकेट को। अब क्या खेलेगा, उसी दौरान मैंने रॉकी फिल्म देखी और मुझे प्रेरणा मिली कि कोशिश करनी चाहिए। मैंने फिर से प्रेक्टिस शुरू की। ट्रेनिंग और एक्सरसाइज ने मेरा सोया हुआ जुनून जगा दिया। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में चारबाग में आयोजित सत्र ‘फीयरलेस : ब्रेकिंग थ्रू द बाउंड्री लाइन’ में मोहिंदर अमरनाथ ने ये बात कही।


मोहिंदर का कहना था कि आप फास्ट बॉलिंग के सामने खेलकर ही अच्छे बल्लेबाज़ बन सकते हैं। हमेशा एग्रेसिव रहो ,पॉजिटिव रहो। जुनून है जोश है तो आप कुछ भी कर सकते हैं। खेल से बचना एक अवसर खो देना है। उस समय हमारी टीम में भी साउथ के कुछ खिलाड़ी ऐसे थे। जिनकी सोच थी कि फ़ास्ट बॉलर्स से चोट खाने से अच्छा है कि खेलें ही नहीं। मैंने कभी भी समस्या को कल पर नहीं छोड़ा। उसका मुक़ाबला आज ही किया।

पिता पर लिखना थोड़ा आसान था, भाई पर लिखना मुश्किल

इससे पहले जेएलएफ में गुरुवार को चारबाग में हुए सत्र में चर्चा करते हुए रजिंदर अमरनाथ ने कहा कि मैंने अपने पिता लाला अमरनाथ पर भी किताब लिखी है और अब अपने भाई मोहिंदर अमरनाथ पर लिखी है। मेरा मानना है कि पिता पर लिखना थोड़ा आसान था जबकि जिस भाई के साथ आप बड़े हुए है। खेले हैं, झगड़े हैं, बदले में मार खाई है उन सब पर लिखना मुश्किल होता है। बचपन में मेरे भाई को मेरी वजह से कई बार पिटाई भी खानी पड़ी है। इन्हें फिल्मों का शोक था और पिताजी को फ़िल्म के नाम से ही नफ़रत थी। उन्हें क्रिकेट से बहुत लगाव था। सारे दिन क्रिकेट खेलना भी अलाऊ था। रजिंदर अमरनाथ ने कहा की उनके भाई मोहिंदर अगर क्रिकेटर न बनते तो शायद फिल्मों में चले जाते पर तब भारत 83 का विश्व कप भी नहीं जीत पाता।

ये मौहब्बतों का शहर है जनाब

किताब के देर से आने के सवाल पर मोहिंदर अमरनाथ ने कहा कि यह मौहब्बतों का शहर है जनाब, यहां सवेरा सूरज से नहीं आपके दीदार से होता है। किताब लिखने का काम भाई का था। मैंने कह दिया कि क्रिकेटर बनाया है तो अब किताब भी लिख। इस किताब पर हम तीन साल से काम कर रहे थे। मैं तो हिंदी मीडियम से पढ़ा हूं इसलिए मैं पहले हिंदी में नोट्स बनाता और फिर अंग्रेजी में उनके अनुवाद करवाता। ऐसे में कोई तारतम्य ही नहीं बन पाया। सब भाई रजिंदर की ही मेहनत है।

पिता ने सिखाया संघर्ष करना

हम भाग्यशाली रहे कि हमें पिता के रूप में एक पिता ही नहीं बल्कि एक मेंटर, एक कोच मिला जिसने हमें खेल के साथ ही अनुशासन भी सिखाया। चोट लगने पर भी डरना नहीं बल्कि संघर्ष करना सिखाया। मैंने कई क्लास दो से चार साल में पास किए क्योंकि हमारे लिए पढ़ाई से ज़्यादा क्रिकेट महत्वपूर्ण रहा। हमारे पिता कहा करते थे कि मैंने पहले क्रिकेट से शादी की है बाद में तुम्हारी मां से। क्रिकेट उनके लिए जुनून था। एक चैलेंज था। उनका कहना था कि चैलेंज आपको अधिक मजबूत बनाता है। जब मैं टीम से बाहर रहता तब भी निराश नहीं होता था। 1970 में मैं छह सप्ताह क्रिकेट से दूर था लेकिन जब वेस्ट इंडीज़ दौरे पर गया तो दो पारी में दो शतक आ गए। जब मैं फ़ील्ड में होता था तो एक ही उद्देश्य होता था सिर्फ़ देश के लिए खेलना । वतन से बड़ा कुछ नहीं है और लकी रहा हूं कि मुझे देश की सेवा का अवसर मिला।

मैनेजर ने कहा था कि पाकिस्तान में शराब नहीं मिलेगी, लेकिन जब वहां देखा तो शराब की नदियां बह रही थी…

मोहिंदर ने बताया कि उस समय टीम और मैनेजमेंट के रिश्ते इतने दोस्ताना हुआ करते थे कि जब हम पाकिस्तान टूर पर जा रहे थे तो हमारे मैनेजर ने कह कि सब अपने किट में वाइन की एक्स्ट्रा बोतल रख लेना क्योंकि पाकिस्तान में शराब नहीं मिलेगी लेकिन जब वहां गए तो देखा कि यहाँ तो शराब की नदियां बह रही है। कराची में एक बार भारतीय और पाकिस्तानी खिलाड़ी एक केंटोनमेंट एरिया में पार्टी कर रहे थे तभी अचानक कुछ पाकिस्तानी आर्मी के लोग ए के 47 लिए आ धमके और शराब पीने के लिए पूरी इंडियन टीम को जेल में डालने की धमकी देने लगे। लेकिन बाद में मामला शांत हो गया।


बेहद ईमानदार होते हैं पाकिस्तानी अंपायर

सत्र के दौरान मोहिंदर अमरनाथ ने कहा कि पाकिस्तानी अंपायर तो बेहद ईमानदार होते हैं। उनके खिलाड़ी बीच मैच में उनसे पूछते हैं कि अल्लाह कहां हैं तब अंपायर उंगली उठाकर आकाश की तरफ़ इशारा कर देते हैं और विपक्षी खिलाड़ी आउट हो जाते हैं।

सलेक्टर्स को कोई मुश्किल नहीं होती

एक समय सलेक्टर्स को बंच ऑफ़ जोकर्स कहने के बाद ख़ुद सलेक्शन कमेटी में रहे हैं तो खिलाड़ी के चयन में आने वाली चुनौतियों के सवाल पर अमरनाथ का कहना था कि टीम को चुनना कोई मुश्किल काम नहीं क्योंकि आप देश की टीम चुन रहे होते है न कि किसी को खुश करने के लिए। कई युवा टैलेंट देश के लिए खेलने का इंतज़ार कर रहे होते हैं और कुछ सीनियर अपने स्लो खेल से देश को निराश कर रहे होते हैं ।

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