अल्बर्ट हॉल पर सुरों की महफिल, बिखरा लोक संगीत और फ्यूज़न का जादू

टीम एनएक्सआर जयपुर। राजस्थान पर्यटन विभाग की अनूठी पहल कल्चरल डायरीज के तहत नवम्बर माह की अंतिम सांस्कृतिक संध्या शनिवार को ऐतिहासिक अल्बर्ट हॉल पर आयोजित की गई। इस खास आयोजन में जयपुरवासियों और भारी संख्या में घरेलू व विदेशी पर्यटकों ने लोक और आधुनिक संगीत के बेमिसाल संगम का आनंद उठाया। राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और आधुनिक संगीत की स्वरलहरियों ने इस महफिल को यादगार बना दिया।

रावण हत्था के सुरों में डूबे जयपुरवासी

कार्यक्रम की शुरुआत राजस्थान के प्राचीन वाद्य यंत्र रावण हत्था की मधुर तान से हुई। आमेर के प्रसिद्ध लोक कलाकार रूपाराम और उनके साथियों ने अपनी प्रस्तुति से समां बांध दिया। घूमर, केसरिया बालम, और निम्बुडा जैसे लोकप्रिय राजस्थानी गीतों को रावण हत्था के जरिए नए अंदाज में पेश किया गया।

रावण हत्था जिसे वायलिन का पूर्वज कहा जाता है। ये राजस्थान की लोक परंपरा में एक विशेष स्थान रखता है। इसका प्रयोग विशेष रूप से भोपा समुदाय द्वारा पाबूजी की फड़ गायन में किया जाता है। इस एक तार वाले वाद्य यंत्र से निकलने वाली धुनों की मिठास ने अल्बर्ट हॉल के प्रांगण सहित रामनिवास गेट तक मौजूद सभी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

युग्म बैंड: फ्यूज़न का जादू
रावण हत्था वादन की प्रस्तुति के बाद मंच संभाला जयपुर के इंडी फोक बैंड युग्म ने। इस बैंड ने पारंपरिक और आधुनिक संगीत का ऐसा मेल प्रस्तुत किया जिसने दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। मुसाफिर हूं, ओ रे पिया, और अन्य गीतों पर जयपुरवासी और विदेशी सैलानी ताल से ताल मिलाते नजर आए। उनकी अंतिम प्रस्तुति में राग बैराग की काव्यात्मक जुगलबंदी ‘मन बैरागी हुआ’ से श्रोता झूम उठे।

युग्म बैंड ने भारतीय और पश्चिमी वाद्ययंत्रों के जरिए संगीत में नए आयाम जोड़े। उनके गीतों और कविताओं में राजस्थान की सांस्कृतिक जड़ों की गूंज सुनाई दी। बैंड के कलाकारों ने बताया कि उनका उद्देश्य भारतीय लोकधुनों और परंपरागत वाद्यों को विश्व मंच पर नई पहचान दिलाना है।

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