एंटरटेनमेंट के नाम पर कुछ दशक पहले चंद सिनेमाघर के अलावा सर्कस ही था, आज सिनेरियो को बदल गया है : अरबाज खान

स्मिता बंसल बोली- बालिका वधु ने राजस्थानी संस्कृति को अच्छे दिखाया, फिल्मों ने राजस्थान का कद बढ़ाया

पुनीत इस्सर बोले- बतौर एक्टर मैंने कई रीजनल फिल्में की, इससे मेरा अभिनय कौशल बढ़ा है

जयपुर। राजस्थान फिल्म फेस्टिवल (आरएफएफ) के तहत रॉयल ऑर्किड में  भारतीय क्षेत्रीय सिनेमा की विविधता को सेलिब्रेट करते हुए टॉक शो का आयोजन किया गया। टॉक शो में अभिनेता अरबाज खान,  अभिनेत्री स्मिता बंसल, सीनियर एक्टर पुनीत इस्सर, तमिलनाडु से  कर्थिक साउंडराराजन, निर्देशक (वडक्कुपट्टि रामासामी), लिंडा हेप्जिबा कस्तूरी अलेक्जेंडर, केरल के विनोद मेनन, निर्माता (रानी द रियल स्टोरी), जरीन शिहाब, अभिनेत्री (आट्टम), कर्नाटका से रविचंद्र अज, निर्माता (ब्लिंक), प्रसाद पूजारी, निर्देशक (बालीपे), हेमंत सुेराना, निर्माता (बालीपे),  महाराष्ट्र से प्रवीण त्यादे, निर्माता (सत्यशोधक), निलेश जलमकर, निर्देशक (सत्यशोधक), गुजरात के अजहर, लेखक (इट्टा किट्टा), अंतिमा, लेखिका (इट्टा किट्टा), राजस्थान से श्रवण सागर, महेन्द्र मौजूद रहे। राजस्थानी लेखक चरण सिंह पथिक, स्टेज ऐप के कल्चर हेड रेनू राना और हीरेन सेठिया भी टाॅक शो में मौजूद रहे। ​​​​​​​

फेस्टिवल की फाउंडर संजना शर्मा और प्रोग्रामिंग हैड अनिल जैन ने बताया कि यह टॉक शो क्षेत्रीय सिनेमा के विकासशील परिदृश्य पर अमूल्य जानकारी प्रदान करने वाला साबित हुआ। ओटीटी और सिनेमा के बीच की दूरी को इस टॉक शो ने खत्म किया।  

अभिनेता अरबाज ने कहा कि कोविड से पहले मेरे पास दो-तीन ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के सब्सक्रिप्शन थे। मेरे पास नेटफ्लिक्स जब आया था, तब से मेरे पास मौजूद था। वह मेरे पास 5 साल से था, जो मैंने 5 साल में नहीं देखा था। वह मैंने कोविड के दौरान डेढ़ साल में देख लिया था। उससे क्या हुआ कि, मैंने वर्ल्ड सिनेमा को एक्सप्लोर किया। उसमें भाषायी विरोध नहीं था, क्योंकि सबटाइटल फिल्मों के साथ मौजूद थे। ऐसे समय में लोगों ने भी सिर्फ हिंदुस्तानी फिल्में नहीं, बल्कि कई जगह की डब फिल्में भी देखी।

एंटरटेनमेंट के नाम पर कुछ दशक पहले हिंदुस्तान में चंद सिनेमाघर के अलावा सर्कस ही था। आज सिनेरियो को बदल गया है। आज कॉमेडी से लेकर म्यूजिक डांस कई तरह के लाइव परफॉर्मेंस लोगों के सामने हैं, तो ऐसे में लोगों को कई ऑप्शन एंटरटेनमेंट के मिल रहे हैं। ओटीटी ने तो लोगों को अलग से ऑप्शन भी दे दिया है, जिसमें रिमोट उनके हाथ में है। जिस कंटेंट को वह देखना चाहते हैं उसे ही वह देखेंगे।

अरबाज ने कहा कि मैंने राजस्थान में बहुत शूटिंग की है। जोधपुर और जयपुर में। एक फिल्म थी ताजमहल उसकी शूटिंग के लिए भी मैं कई बार यहां आया। लोगों को यह मालूम है कि अधिकांश फिल्मों की शूटिंग मुंबई में होती है। अब छोटे-छोटे स्मॉल टाउन जगहों की कहानियों पर फिल्में बन रही हैं। पंजाब, यूपी, मध्य प्रदेश या साउथ की कहानी है तो वहां पर ही जाकर उसे प्रोजेक्ट को शूट किया जा रहा है। मैंने पटना शुक्ला फिल्म बनाई। उसकी शूटिंग भोपाल में की और उसका मुझे बहुत अच्छा रिस्पांस मिला।

भोपाल की एक बात जरूर में कहना चाहूंगा कि वहां सबसे शानदार शूटिंग का माहौल है। हमें शूटिंग के दौरान कभी परेशानी नहीं हुई। हम रात को भी शूटिंग करते थे तो कोई दिक्कत नहीं होती थी। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश फिल्मों को सब्सिडी दे रहे हैं उनके साथ कई और स्टेट भी हैं जो इस तरह का प्रोत्साहन फिल्मकारों को दे रहे हैं।

राजस्थानी फिल्म करने के सवाल पर अरबाज ने कहा कि बतौर फिल्ममेकर हमारे लिए सिर्फ स्टोरी मैटर करती है। जिस ऐरिया में आपकी पकड़ होती है, आप उसी में करना पसंद करते हैं। मुझे हिन्दुस्तानी यानी बॉलीवुड फिल्मों में इंटरेस्ट है, उसमें हमें साउथ का डायरेक्टर या कहीं और का डायरेक्टर मिल जाता है और कहता है कि यह मैं अच्छे से कर पाउंगा। अगर ऐसा राजस्थान के संबंध में हुआ तो यहां भी फिल्म जरूर करूंगा। 
 

एक्ट्रेस स्मिता बंसल ने कहा कि जिस तरह से फिल्मों में राजस्थान को दिखाया गया है, उससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता। हमारे कल्चर को दुनिया भर में फिल्मों की वजह से पसंद किया जाता है। मैं इससे खुश हूं कि राजस्थानी कल्चर को बहुत अच्छे तरीके से फिल्मों में दिखाया गया है। गुजराती और राजस्थानी दो ऐसे कल्चर हैं, जिन्हें फिल्मों में अच्छे से यूज किया गया है। मैंने बालिका वधू टीवी सीरियल में काम किया है और उसमें भी बेहतर तरीके से राजस्थान को दिखाया गया। इसके लेखक भी जयपुर से बिलॉन्ग करते थे और इसके कुछ कलाकार भी जयपुर से जुड़े हुए थे। ऐसे में राजस्थानी संस्कृति को अच्छे से पोट्रे किया जा सका। 

एक्टर पुनीत इस्सर ने कहा कि मैंने भारत की कई भाषाओं में फिल्में की है। ऐसे में मुझे इन जगहों के कल्चर की जानकारी भी मिली है, जो बतौर एक्टर मेरे लिए एक अच्छा कदम रहा है। हमारे देश का कल्चर दुनिया का सबसे रिच कल्चर है। ऐसे में रीजनल भाषाओं में बनने वाली फिल्में इस कल्चर को और खूबसूरत बना देती हैं। पुनीत इस्सर ने कहा कि रीजनल सिनेमा को मेरे हिसाब से आप लोगों को रीजनल नहीं कहकर हिंदुस्तानी सिनेमा कहना चाहिए। क्योंकि वे रीजनल नहीं, वह बेहतरीन फिल्में बनाते हैं। वह हमारे हिंदुस्तान की जमीन की कहानी लेकर आते हैं।

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