विक्रम संपत की नई पुस्तक ‘टीपू सुल्तान: द सागा ऑफ मैसूर इंटररेग्नम (1760-1799)’ का विमोचन
जयपुर, 18 दिसंबर। इतिहासकारों का काम वर्तमान मानदंडों के आधार पर ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के चरित्र का आकलन करना नहीं है। उनकी भूमिका अभिलेखों की खोज करना और उन्हें निष्पक्ष रूप से प्रस्तुत करना है, ताकि पाठक तथ्यों का विश्लेषण कर सकें और अपने स्वयं के निर्णय बना सकें। विक्रम संपत ने बुधवार को जयपुर में अपनी नई पुस्तक ‘टीपू सुल्तान: द सागा ऑफ मैसूर इंटररेग्नम (1760-1799)’ के विमोचन के अवसर पर यह बात कही। वे लेखिका लिपिका भूषण से चर्चा कर रहे थे। इस कार्यक्रम का आयोजन प्रभा खेतान फाउंडेशन ने ‘एहसास वूमन ऑफ जयपुर’ और ‘वी केयर फाउंडेशन’ के सहयोग से किया था।
टीपू सुल्तान पर अपनी लेखन यात्रा के बारे में बताते हुए संपत ने बताया कि वह बचपन से ही एक टीवी शो में टीपू सुल्तान के महिमामंडित चित्रण से परेशान थे। हालांकि वह एक छात्र के रूप में इतिहास के प्रति विशेष रूप से झुकाव नहीं रखते थे, यह किताब सत्य को उजागर करने की जिज्ञासा से उत्पन्न हुई।
संपत ने आगे कहा कि भारतीय इतिहास काफी हद तक दिल्ली-केंद्रित रहा है और टीपू सुल्तान को ‘वाइटवॉश्ड इतिहास’ का शिकार होना पड़ा है। उन्होंने इस पर बल दिया कि इतिहास को सच्चाई के साथ प्रस्तुत किया जाना चाहिए, जिसमें घटनाओं को उसी रूप में दिखाया जाना चाहिए जैसा वे वास्तविक रूप से घटित हुई थीं, ताकि यह ‘इतिहास’ शब्द के असली अर्थ से मेल खाता हो।
इसके बाद उप मुख्यमंत्री दीया कुमारी, भाजपा हरियाणा के प्रदेश प्रभारी तथा भाजपा राजस्थान के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष, डॉ. सतीश पूनिया, एहसास वूमन ऑफ जयपुर, सुनीता शेखावत, आध्यात्मिक गुरु डॉ. विकास शर्मा, पीकेएफ की राष्ट्रीय सलाहकार, विन्नी कक्कड़, वी केयर की चेयरपर्सन और ओनेनरी कन्वीनर, राजस्थान एंड सेंट्रल इंडिया, पीकेएफ अपरा कुच्छल और संचालक लिपिका भूषण ने पुस्तक का विमोचन किया।
इस अवसर पर, उप मुख्यमंत्री दीया कुमारी ने कहा कि इतिहास सिर्फ तारीखों और घटनाओं का संग्रह नहीं है, बल्कि यह हमारी पहचान का सार है। भारत जैसे विविधतापूर्ण और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध देश में, हमारा इतिहास एक मार्गदर्शक प्रकाश के रूप में कार्य करता है, जो हमें नेतृत्व, दृढ़ता और उन मूल्यों की शिक्षा देता है, जो हमें एक राष्ट्र के रूप में परिभाषित करते हैं।
सतीश पूनिया ने कहा कि संपत ने टीपू सुल्तान का संतुलित और सूक्ष्म चित्रण प्रस्तुत करके एकतरफा आख्यानों से ऊपर उठकर उनकी खूबियों और खामियों को कुशलता से उजागर किया है। उन्होंने इस दृष्टिकोण की सराहना करते हुए कहा कि यह एक सच्चे इतिहासकार की पहचान है।
‘टीपू सुल्तान द सागा ऑफ मैसूर्ज इंटरैग्नम (1760-1799)’ डॉ. विक्रम द्वारा लिखित विस्तृत पुस्तक है, जो 1782 से 1799 तक मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के जीवन पर प्रकाश डालती है, तथा भारतीय इतिहास में उनकी भूमिका के बारे में बताती है। इस पुस्तक में टीपू के प्रशासनिक सुधारों, सैन्य अभियानों- विशेष रूप से चार आंग्ल-मैसूर युद्धों और विदेशी ताकतों के साथ उनके राजनयिक संबंधों के बारे में बताती है। इसके अतिरिक्त, पुस्तक में टीपू की नीतियों और कार्यों के बारे में भी बताया गया है, तथा एक सैन्य नेतृत्व और प्रशासक के रूप में उनकी भूमिका पर सूक्ष्म दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।
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