कथा-कीर्तन और पौष बड़ा महोत्सव की धूम रहेगी
टीम एनएक्सआर जयपुर। सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करने के साथ पौष कृष्ण एकम् सोमवार से खरमास शुरू हो गया। अब 15 जनवरी मकर संक्रांति तक कथा-प्रवचन, हवन, नित्य पूजन को छोडक़र मांगलिक कार्य नहीं होंगे। खरमास में श्रद्धालु सूर्य की उपासना में लीन रहेंगे। माघ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा नए साल में 14 जनवरी 2025 को सुबह करीब नौ बजे तक धनु संक्रांति काल रहेगा। इस काल को मलमास या खरमास कहते हैं।
इस अवधि में मांगलिक कार्य करने की मनाही है। मलमास के दौरान मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह, उपनयन संस्कार, गृहनिर्माण, गृह प्रवेश, वास्तु-मुहूर्त, वाहन क्रय, दस्तूर, मुंडन संस्कार समेत शुभ कार्यों पर रोक रहेगी। ज्योतिषाचार्य डॉ. महेन्द्र मिश्रा ने बताया कि 14 जनवरी 2025 को सुबह 8.56 बजे रवि दक्षिणायन से उत्तरायण होते ही अर्थात् सूर्य देव धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते ही मांगलिक कार्य शुरू होंगे।
अब 16 जनवरी से विवाह मुहूर्त शुरू होंगे, जो जून माह तक चलेंगे। 22, 27, 29, 30 दिसंबर, 5, 7 और 11 जनवरी को सर्वार्थ सिद्धि, 7 और 11 जनवरी को अमृत सिद्धि, 17 और 18 दिसंबर त्रिपुष्कर योग, 17, 22 दिसंबर और 5 जनवरी को विशेष योग रहेगा। आवश्यक होने पर इन योगों में आवश्यक वस्तुओं की खरीदी कर सकते है। पूजा घर में रखने के बाद इनका उपयोग करना शुभ रहेगा।
इसलिए नहीं होते हैं मांगलिक कार्य
ज्योतिषाचार्य डॉ. महेन्द्र मिश्रा ने बताया कि धनु एवं मीन राशि के स्वामी देवगुरु बृहस्पति है। जब सूर्य अपने गुरु के घर धनु राशि और मीन राशि में प्रवेश करते हैं तो सूर्य देवगुरु बृहस्पति की सेवा में व्यस्त हो जाते हैं। इससे मांगलिक कार्यों में देवगुरु बृहस्पति एवं सूर्यदेव की उपस्थिति नहीं रहती है। नौ ग्रहों में से बृहस्पति एवं सूर्य दो प्रमुख ग्रह है, इसलिए मांगलिक कार्यों में देवगुरु बृहस्पति एवं सूर्यदेव की उपस्थिति नहीं रहने से शास्त्रों ने मांगलिक कार्य करने की अनुमति नहीं दी है, क्योंकि उनके बिना मांगलिक कार्य अपूर्ण रहता है। इसलिए मांगलिक कार्यों पर रोक रहती है।
सरकार-जनता में बनेगा सामंजस्य
इस बार सूर्यदेव का धनु राशि में बाघ पर सवार होकर प्रवेश हुआ है। उनका उप वाहन अश्व है। संक्रांति नक्षत्र घोरा नाम का है। इसके परिणाम स्वरूप सरकार और जनसामान्य के बीच कई लंबित मामले सुलझाने में सामंजस्य की स्थिति बनेगी। उल्लेखनीय है कि सूर्य का प्रत्येक 12 राशियों में एक मास विचरण काल रहता है, इसे संक्रांति कहते हैं अर्थात कुल 12 संक्रांतियों होती है। जिसमें दो संक्रांति क्रमश: धनु और मीन संक्रांति होती है।
सूर्यदेव धनु राशि में होते हैं तो धनु संक्रांति और सूर्यदेव मीन राशि में होते हैं तो मीन संक्रांति। ये दोनों संक्रांतिकाल को मलमास या खरमास कहते हैं। इन दोनों संक्रांति काल में मांगलिक कार्य की मनाही है। हिन्दू परंपरा में मुहूर्त का विशेष महत्व होता है। हमारे सनातन धर्म में प्रत्येक कार्य के लिए एक अभीष्ट मुहूर्त निर्धारित है। वहीं कुछ अवधि ऐसी भी होती है, जब शुभ कार्य के मुहूर्त का निषेध होता है। इस अवधि में सभी शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इसे खरमास मास कहा गया है।
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